Sunday, 6 December 2015

ये कुछ शेर हुए शायद

मजहब है, व्यापार नहीं,
धर्म कोई हथि‍यार नहीं।

मेरा मन, मेरा जीवन,
बिकने को तैयार नहीं।

चारों तरफ़ सजा है जो,
तेरा-मेरा प्यार नहीं।

बहुत अकेला होगा वो,
जो यारों का यार नहीं।

शि‍कारियों को लगता वो
होंगे कभी शि‍कार नहीं।