Vinay Vishwas in
reviews
-
विनय
विश्वास की ‘‘कविताएँ न सिर्फ़ अपने समय के तल्ख़ सवालों
से जूझती हैं बल्कि व्यापक फलक पर लोगों की सोच को भी धारदार बनाती हैं।’’
---अरुण नारायण, हिन्दुस्तान:
10 जुलाई, 2005
-
‘‘अनंत संभावनाओं की ज़मीन को नए विचारों से जोतने-बोने
वाले’’ कवि हैं ‘‘ विनय विश्वास..’’।
---प्रताप सिंह, इंडिया टुडे, 5 अक्तूबर, 2005
-
विनय
विश्वास की ‘‘कविताएँ अपने समय से टकराते एक संवेदनशील इंसान
के बयान हैं जिन्हें एकायामी नज़र से नहीं देखा जा सकता।’’
---राष्ट्रीय सहारा, 3 जुलाई, 2005
-
‘‘रचनागत समझौते किए बग़ैर तल्ख़ सच कैसे कहा
जाता है- अनेक कविताओं में उन्होंने (विनय विश्वास ने) बड़े कौशल से व्यक्त
किया है।’’
---संजय वर्मा, नवभारत टाइम्स, 3 अप्रैल, 2005
-
‘‘तरक़्क़ी या सफलता की मध्यवर्गीय मानसिकता पर
विनय विश्वास ने अपनी कविताओं में लगातार चोट की है।’’
---नंद भारद्वाज, समकालीन भारतीय
साहित्य, जुलाई-अगस्त, 2007
-
विनय
विश्वास की ‘‘कविताओं में एक लय है, जो दु:ख की
सिम्फनी से पैदा हुई है। यह वेदना पूरी मानवता की वेदना है जिसमें मनुष्य के
होने से लेकर पत्थरों तक की उपस्थिति है। ... यहाँ शब्दों का अपव्यय नहीं। शब्दों
को शख्सियत देने की सलाहियत है।’’
---ज्ञान
प्रकाश विवेक, उद्भावना, जुलाई-सितम्बर, 2006
-
विनय विश्वास ‘‘कविता में पठ्य
और श्रव्य के भेद को मिटाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं और अपने समय की
विसंगति को उद्घाटित करते हैं। विनय विश्वास वास्तव में सांस्कृतिक मूल्यों के
कवि हैं।’’
---बली सिंह, अलाव, मार्च-अप्रैल, 2009
-
‘‘विनय विश्वास का कवि अपना रास्ता ख़ुद
निर्मित करता है।... दिल्ली-देहात में रची-बसी हरियाणवी हिन्दी का रचनात्मक
प्रयोग करने वाले विनय शायद अकेले कवि हैं।’’
---हेमंत
कुकरेती, व्यंग्य
यात्रा, अक्टूबर-मार्च, 2006
-
विनय
विश्वास की ‘‘कविताएँ ज़िंदगी के अच्छे-बुरे पहलुओं से सीधे-सीधे जुड़ती
हैं और सीधे-सीधे समझ आती हैं। यह उनकी भाषा की शक्ति है कि वे सुनने में भी भरपूर
असर पैदा करती हैं और पढ़ने में भी। ... यह ख़ासियत विनय को बहुत सारे कवियों से
अलग करती है और अपने समय का महत्वपूर्ण कवि बनाती है।’’
---अरुण जैमिनी, व्यंग्य
यात्रा, अक्टूबर-मार्च, 2006
-
‘‘… विनय ने समकालीन कविता में जीवन की ज़रूरत को
तो विश्लेषित किया ही है, उन प्रश्नों के उत्तर भी तलाशने की प्रामाणिक
कोशिश की है, जो समकालीन
समाज और मनुष्य को उद्वेलित करते हैं तथा आज की कविता में संवेदना में रचे-बसे
हैं।’’
---हरिमोहन, कादम्बिनी, जुलाई, 2009
-
‘‘विनय विश्वास एक प्रतिभाशाली आलोचक हैं।
...(उनके द्वारा लिखी गई) आलोचना प्रामाणिक और विश्वसनीय है। विनय की आलोचना शैली
संवेदनशील मौलिक विमर्श का उदाहरण है। उसमें एक स्पष्ट निर्णय-पद्धति और
विवेकसम्मत विश्लेषण मिलता है।’’
---हेमंत
कुकरेती, इंडिया टुडे, 23 दिसम्बर, 2009
-
‘‘विनय विश्वास के सरोकार स्पष्ट हैं। वे आज की
कविता में जीवन की लय तलाश करते हैं। यहाँ एक सादगी है। यही आलोचकीय शक्ति भी है।
वो इसी शक्ति के सहारे,
समकालीन कविता के जिस्म तक नहीं बल्कि उसकी आत्मा तक पहुँचते हैं।’’
---ज्ञान
प्रकाश विवेक, वागर्थ, अक्तूबर, 2009
-
‘‘विनय विश्वास कवि-आलोचकों की उस परम्परा को
आगे ले जाने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं, जो मुक्तिबोध से लेकर
विष्णु खरे, राजेश जोशी, अरुण कमल से होती हुई मदन कश्यप तक आती है।...
विनय को ‘दलित’ की बजाय ‘दमित’ शब्द का
प्रयोग करना अधिक उचित लगा है। शायद इसलिए कि यह अधिक अर्थछवि वाला है और एक व्यापक
तबके को अपने भीतर समाहित करने की क्षमता रखता है। इस तरह विनय ने एक नए शब्द के
प्रचलन का प्रयास किया है।... विनय ने आज की कविता की कलागत सकारात्मकता को भी
रेखांकित किया है। ... विनय ने गद्य में ऐसे वाक्य लिखे हैं, जो कविता की
पंक्तियों का सानी रखते हैं।’’
---बली सिंह, अनभै साँचा, अप्रैल-जून, 2009
No comments:
Post a Comment