मैं जब से बैठा हूँ पद पर
मुझ पर पद भी बैठ गया है
अपनी स्तुति में खोया-खोया
दुनिया को देखा करता हूँ
मुझे देखकर झुके न कोई
क्या ऐसा भी हो सकता है
निकल आए यदि ऐसा कोई तो मुझको लगने लगता है-
रिश्तों पे गिर पड़ी बिजलियाँ
सारी दुनिया ही अशिष्ट है
उसे बुलाकर
समझाने की भाषा में भी धमकाता हूँ
और क्योंकि वो पदविहीन है
उसको झुकना ही पड़ता है
...मुझे बचाने पड़ते हैं यों सच्चे रिश्ते
चॉकलेट के स्वप्न दिखाकर
चरण चाटने वालों में से एक-एक शातिर को
अपना दुश्मन एक थमा देता हूँ
मेरा वैर निभाने में
जब जिसे सफलता मिल जाती है
संबंधों के युद्ध-क्षेत्र का वो ही परम वीर होता है
...मुझे बचाने पड़ते हैं यों सच्चे रिश्ते
सुबह-शाम दिन-रात
हमेशा मूर्ख जगत् को समझाता हूँ-
सुंदरता, संगीत, स्वाद, ख़ुशबू...
सब कुछ मैं
मुझको समझो जितना समझो उतना ही कम
मैं आनंदम्... परमानंदम्!
अपनी स्तुति में खोया-खोया
दुनिया को देखा करता हूँ
मुझे देखकर झुके न कोई
क्या ऐसा भी हो सकता है
निकल आए यदि ऐसा कोई तो मुझको लगने लगता है-
रिश्तों पे गिर पड़ी बिजलियाँ
सारी दुनिया ही अशिष्ट है
उसे बुलाकर
समझाने की भाषा में भी धमकाता हूँ
और क्योंकि वो पदविहीन है
उसको झुकना ही पड़ता है
...मुझे बचाने पड़ते हैं यों सच्चे रिश्ते
चॉकलेट के स्वप्न दिखाकर
चरण चाटने वालों में से एक-एक शातिर को
अपना दुश्मन एक थमा देता हूँ
मेरा वैर निभाने में
जब जिसे सफलता मिल जाती है
संबंधों के युद्ध-क्षेत्र का वो ही परम वीर होता है
...मुझे बचाने पड़ते हैं यों सच्चे रिश्ते
सुबह-शाम दिन-रात
हमेशा मूर्ख जगत् को समझाता हूँ-
सुंदरता, संगीत, स्वाद, ख़ुशबू...
सब कुछ मैं
मुझको समझो जितना समझो उतना ही कम
मैं आनंदम्... परमानंदम्!
Aakhiri pad adhik achchha laga....Badhai !
ReplyDeleteshukriya suresh bhai
ReplyDeleteबहुत शानदार कविता है विनय भाई बधाई
ReplyDeleteबहुत धारदार कविता!
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