वो तुम्हारा मिल जाना मुझे
मेरे लिए वो अहसास हुईं तुम
जिसने चलते रहने को
यात्रा बनाया
वो सपना जिसने सच्चाई को गाया
वो सुंदरता जिसने
सादगी का गीत सुना
और वो बारिश जिसने होने के लिए
सूखे को चुना
तुम मिलीं जैसे थकान को बसेरा
अँधेरे को सवेरा
काग़ज़ को कलम
रास्ते को कदम
जैसे पहली बार मिलें किसी पौधे को कलियाँ
ऐसे मिलीं तुम जैसे
उलझे पड़े सूत को जुलाहे की उँगलियाँ
मैंने तो जंगलों में जंगल ही देखे थे
तुमने कहा कि ये जंगल नहीं
छुपी हुई राहें हैं
मैंने तो दीवारों को बाँटते ही देखा था
तुमने बताया कि ये
घर को गोद लेने के लिए
धरती की उठी हुई बाँहें हैं
मैं प्यास की सड़क पे हज़ारों साल का सफ़र
तुम कड़ियल चट्टानों पे झरने का असर
तुमने मेरी एक-एक मुश्किल यों चुनी जैसे
कोई निपट दरिद्र चुन रहा हो एक-एक सिक्का
जैसे दाल से माँ बीन रही हो एक-एक कंकड़
जैसे कोई गायक
एक-एक सुर उठा रहा हो
जैसे कोई बरसोंबरस की चुप्पी में
संगीत का मर्म गुनगुना रहा हो-
औरों का दु:ख
गंगाजल है
देखा नहीं
पिया जाता है
... ऐसे प्यार किया जाता है।
खूबसूरत, उम्दा, मौलिक भावनात्मक विचारों से लबरेज़ रचना । बधाई ! 'मेरी एक-एक मुश्किल तुमने ऐसे चुनी, जैसै कोई निपट दरिद्र चुन रहा हो सिक्के'- सर्वश्रेष्ठ मौलिक अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर! ऐसी कविता लिखी नहीं जाती, जी जाती है! हर शब्द खूबसूरत!! बहुत बधाई!
ReplyDeleteऔरों का दु:ख
ReplyDeleteगंगाजल है
देखा नहीं
पिया जाता है
... ऐसे प्यार किया जाता है। बहुत अच्छे विनय जी
औरों का दु:ख
ReplyDeleteगंगाजल है
देखा नहीं
पिया जाता है
... ऐसे प्यार किया जाता है। बहुत अच्छे विनय जी
औरों का दुःख गंगाजल है देखा नहीं पिया जाता है।
ReplyDeleteऐसे प्यार किया जाता है।
अब ऐसा कम पढ़ने को मिलता है
निस्संदेह रचनाकार विनय जी सार्वजनिक बधाई के पात्र हैं ।
वाह विनय जी ...एक एक पंक्ति एक एक भाव जैसे गहरे भीतर पैठे सच का कलम के ज़रिये बहते आना...और स्वाभाविक रूप से ढलान पाकर मन की अटल गहराई में पुन:समां जाना।
ReplyDeleteआपकी कलम का यह जादू अद्भुत है...
तुम मिलीं जैसे थकान को बसेरा
ReplyDeleteअँधेरे को सबेरा
कागज को कलम
रास्ते को कदम...
जीवन संगिनी के प्रति
मौलिक अहसासों से ओतप्रोत
सुन्दर रचना
बहुत खूब लिखा है विनय जी , तुमने बताया की घर को गोद लेने ........बधाई |
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