Sunday, 11 October 2015

कुछ अहसास ये भी

वो तुम्‍हारा मिल जाना मुझे
मेरे लिए वो अहसास हुईं तुम
जिसने चलते रहने को
यात्रा बनाया
वो सपना जिसने सच्‍चाई को गाया
वो सुंदरता जिसने
सादगी का गीत सुना
और वो बारिश जिसने होने के लिए
सूखे को चुना
         
तुम मिलीं जैसे थकान को बसेरा
अँधेरे को सवेरा
काग़ज़ को कलम
रास्‍ते को कदम
जैसे पहली बार मिलें किसी पौधे को कलियाँ
ऐसे मिलीं तुम जैसे
उलझे पड़े सूत को जुलाहे की उँगलियाँ

मैंने तो जंगलों में जंगल ही देखे थे
तुमने कहा कि ये जंगल नहीं
छुपी हुई राहें हैं
मैंने तो दीवारों को बाँटते ही देखा था
तुमने बताया कि ये
घर को गोद लेने के लिए
धरती की उठी हुई बाँहें हैं

मैं प्‍यास की सड़क पे हज़ारों साल का सफ़र
तुम कड़ि‍यल चट्टानों पे झरने का असर
तुमने मेरी एक-एक मुश्किल यों चुनी जैसे
कोई निपट दरिद्र चुन रहा हो एक-एक सिक्‍का
जैसे दाल से माँ बीन रही हो एक-एक कंकड़
जैसे कोई गायक
एक-एक सुर उठा रहा हो
जैसे कोई बरसोंबरस की चुप्‍पी में
संगीत का मर्म गुनगुना रहा हो-

औरों का दु:ख
गंगाजल है
देखा नहीं
पिया जाता है
... ऐसे प्‍यार किया जाता है।


8 comments:

  1. खूबसूरत, उम्दा, मौलिक भावनात्मक विचारों से लबरेज़ रचना । बधाई ! 'मेरी एक-एक मुश्किल तुमने ऐसे चुनी, जैसै कोई निपट दरिद्र चुन रहा हो सिक्के'- सर्वश्रेष्ठ मौलिक अभिव्यक्ति !

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर! ऐसी कविता लिखी नहीं जाती, जी जाती है! हर शब्द खूबसूरत!! बहुत बधाई!

    ReplyDelete
  3. औरों का दु:ख
    गंगाजल है
    देखा नहीं
    पिया जाता है
    ... ऐसे प्‍यार किया जाता है। बहुत अच्छे विनय जी

    ReplyDelete
  4. औरों का दु:ख
    गंगाजल है
    देखा नहीं
    पिया जाता है
    ... ऐसे प्‍यार किया जाता है। बहुत अच्छे विनय जी

    ReplyDelete
  5. औरों का दुःख गंगाजल है देखा नहीं पिया जाता है।
    ऐसे प्यार किया जाता है।
    अब ऐसा कम पढ़ने को मिलता है
    निस्संदेह रचनाकार विनय जी सार्वजनिक बधाई के पात्र हैं ।

    ReplyDelete
  6. वाह विनय जी ...एक एक पंक्ति एक एक भाव जैसे गहरे भीतर पैठे सच का कलम के ज़रिये बहते आना...और स्वाभाविक रूप से ढलान पाकर मन की अटल गहराई में पुन:समां जाना।
    आपकी कलम का यह जादू अद्भुत है...

    ReplyDelete
  7. तुम मिलीं जैसे थकान को बसेरा
    अँधेरे को सबेरा
    कागज को कलम
    रास्ते को कदम...

    जीवन संगिनी के प्रति
    मौलिक अहसासों से ओतप्रोत
    सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  8. बहुत खूब लिखा है विनय जी , तुमने बताया की घर को गोद लेने ........बधाई |

    ReplyDelete